“Shiv Tandav Stotram” Lyrics
Here you can read about the “Shiv Tandav” Lyrics in English and Hindi/ शिव तांडव स्तोत्र/ The story behind the “Shiv Tandava Stotram” in English and Hindi/
“Shiv Tandav Stotram” is one of the
most famous stotra, written in Sanskrit. This stotra describes the Lor Shiva’
beauty and infinite power. Ravana, who was the King of Lanka was a great
devotee of Lord Shiva. It is believed that Ravana composed this Stotra or hymns
in praise of Lord Shiva, and prayed for salvation. Due
to the prayer and penance meditation, Ravana received powers from Lord Shiva and also got “Chandrahas”, a celestial sword.
In “Shiv
Tandav Stotram”, total quatrains are 16 and has 16 syllables per line.
The word “Tandav” is taken from a word Tandul, meaning jump. Tandava or Tandav
also known as Tandava Natyam is a divine dance. Tandav is performed by Lord
Shiva. This vigorous dance of Lord Shiva is the source of creation, preservation
and also dissolution. Rudra Tandav shows Lord Shiva’s violent nature or mood,
creator and destroyer of the whole universe while Ananda Tandava shows Lord
Shiva’s joyful dance. Lord Shiva is called “Nataraj”, that means “King of Dance”.
Lord Shiva performed the
Rudra Tandava in various occasions. He performed Tandava when his first wife
Sati immolated herself in Daksha-Yajna or Daksha-Yaga. Then angry Lord Shiva took
the form of Rudra and performed the Rudra Tadava for expressing his sadness and
anger.
Background
Story of “Shiv Tandav Stotram”
According to Uttara
Kanda of the Ramayana, Ravana, the King of Lanka who had ten heads and twenty
arms, was a very powerful rakshasa or demon. Once, he attacked his step brother
and God of wealth Kubera who was the king of city Alaka or Alakapuri and
defeated the city. When Ravana was coming back to his kingdom Lanka riding “Pushpaka
Vimana”, the chariot could not pass over the Mount Kailash. Then Ravana met
Nandi and asked for this reason. Nandi said that Lord Shiva and his wife Devi Parvati
are enjoying dalliance so no one is allowed to go there. Arrogant Ravana tried
to uproot the whole Mount Kailash. When He tried to lift the mountain, the
mountain began to shake. Omniscient Shiva felt that that Ravana was behind this
so He pressed the Kailash Mountain with His big toe. Ravana’s hand got stuck
under the mountain so he cried loudly in pain and sang “Shiv Tandav Stotram”
for 1000 years to praise Lord Shiva. Lord Shiva
was pleased and blessed Ravana and gave him the “Chandrahasa”, an invincible
sword and also gave him a name “Ravana”, meaning “one who cried”. The stotra or
hymn sang by Ravana is called as “Shiv Tandav Stotram”.
“Shiv
Tandav” Lyrics in English
Jata taveega lajjala
pravaaha paavi tasthale
Galeva lambya lambitaam
bhujaanga tunga malikam
Damad damad damad dama
ninada vada marvayam
Chakara chandtandavam
tanotura shiva, shivam..
Jata kataha sambhrama
bhrama nilimpa nirjhari
Vilola veechi vallarai
virajamana murdhani
Dhaga dhaga dhaga
jvalala laatta patta pavake
Kishora chandra shekhare
rati pratik-shanam mama ..
Dhara dharendra nandini
vilasa bandhu bandhura
Sphuradi ganta santati
pramodamana-manase
Krupa kataksha dhorani
nirudhadurdha rapadi
Kva chidigam bare mano
vinodha metu vastuni
Jata bhujanga pingala
sphuratphana mani prabha
Kadamba kumkuma drava
praliptha digva dhumukhe
Madandha sindhu raspura
tvagu tariya medure
Mano vinoda madh bhutam
bibhartu bhuta bhartari
Om Namah Sivaaye…
Sadha shivam Bajaam Yaham
Sadha shivam Bajaam Yaham
Om Namah Sivaaye…
Sahasra lochana
prabhritya shesha lekha shekhara
Prasuna dhuli dhorani
vidhusa ranghri pithabhuh
Bhujanga mala yani
baddha jata jutaka
Shree yaichi raya
jayatam chakora bandhu shekhara
Lala tachat varaj vala
dhanajnjayas pulinga bha
nipita pancha sayagam
namanni limpa nayakam
Sudha mayukha lekhaya
viraja mana shekharam
Maha kapali sampade
shiro jatala mas tunah
Karala bhala pattika
dhaga dhaga dhaga jwala
dhananja yahu teekruta
prachanda panja sayake
Dharaa dharendra nandini
kuchagra chitra pathraka
Pra kalpanaika shilpini
trilochane ratir mama
naveena megha mandali
nirud dhadur dhara sphurat
Kuhunis hithi nitamah
prabandha baddha kandharah
nilimpa nirjharee dhara
stanotu krutti sindhurah
Kalani dhana bandhurah
shriyam jagad dhuran…dharah…
Ommm……
Praphulla neela pankhaja
prapancha kalima prabha
Valambi kantha kandhali
raruchi prabaddha kandharam
Smarach chidam purach chidam
Bhavach chidam makhach chidam
Gajachchi dandhaka
chidam tamamtaka chidam bhaje
Akharva sarva mangala
kalaaka damba manjari
Rasa pravaha madhuri
vijrumbhana madhu vratam
Smaran takam puran takam
bhavan takam makhan takam
Gajanta kandha kan takam
taman takan takam bhaje
Ommm……
Jayatvada bhravi bhrama
bhramad bhujanga mashvasa
Dhivinir gamat kramas
purat karaala bhaal havyavat
Dhimi dhimi dhimi
dhvanan mrdanga tunga mangala
Dhvani kramapravartita
prachanda tandavah shivah …..
Drushadvi chatra
thalpayor bhujanga maukti kasrajor
Garishtha ratna
loshthayoh suhrud vipaksha pakshayoh
Trushnara vinda
chakshushoh prajamahi mahendrayoh
Sama pravarta yanmanah
kada sada shivam bhajamyaham.
Kada nilimpa nirjhari
nikujnja kotare vasanh
Vimukta durmatih sada
shirah sthamajnjalim vahanh
vilola lola lochano
lalama bhala lagnakah
Shiveti mantra
muchcharan sada sukhi bhavamyaham
imamhi nitya meva muktam
uttamottamam stavam
Pathansmaran bruvannaro
vishuddhi meti santatam
Hare gurau subhakti
mashu yati nanya thagatim
Vi mohanam hi dehinam
sushanka rasya chintanam…
"Shiv Tandav Stotram" Lyrics in
Hindi
शिव तांडव स्तोत्र
जटाटवी गल ज्जल प्रवाह पावित स्थले
गलेऽ वलम्ब्य लम्बितां भुजंग तुंग मालिकाम्।
डमड्डम ड्डम ड्डम निनादवड्डमर्वयं
चकार चंड तांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥१॥
जटा कटाह संभ्रम भ्रम न्निलिंप निर्झरी
विलोल वीचि वल्लरी विराज मान मूर्धनि ।
धगद्धगद्धग ज्ज्वलल्ल लाट पट्ट पावके
किशोर चंद्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधु वंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मान मानसे ।
कृपा कटाक्ष धारणी निरुद्ध दुर्ध रापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणा मणि प्रभा-
कदंब कुंकुम द्रव प्रलिप्त दिग्व धूमुखे ।
मदांध सिंधुर स्फुरत्वगुत्तरी यमेदुरे
मनो विनोद द्भुतं बिंभर्तु भूत भर्तरि ॥४॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर-
प्रसून धूलि धोरणी विधू सरांघ्रि पीठभूः ।
भुजंग राज मालया निबद्ध जाट जूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधु शेखरः ॥५॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥६॥
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥७॥
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामही महेन्द्रयोः
समं प्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
निलिंपनाथनागरीकदम्बमोलमल्लिक:
निगुम्फनिर्भरक्षरन्मधूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीमहर्निशं
परिश्रयं परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभा शुभ प्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥15॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति संततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥16॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः॥
॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्॥
"शिव तांडव स्तोत्रम"
संस्कृत में लिखे गए सबसे प्रसिद्ध स्तोत्रों में से एक है। यह स्तोत्र भगवान शिव की सुंदरता और अनंत शक्ति का वर्णन करता है। रावण, जो लंका का राजा था, भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। ऐसा माना जाता है कि रावण ने भगवान शिव की स्तुति में इस स्तोत्र या भजन की रचना की और मोक्ष की प्रार्थना की। प्रार्थना और तपस्या ध्यान के कारण, रावण को भगवान शिव से शक्तियां प्राप्त हुईं और उन्हें एक दिव्य तलवार
"चंद्रहास"
भी मिली।
"शिव तांडव स्तोत्रम"
में, कुल चौपाइयों 16
हैं और प्रति पंक्ति 16
शब्दांश हैं।
"तांडव"
शब्द तांडुल शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है कूदना। तांडव या तांडव जिसे तांडव नाट्यम के नाम से भी जाना जाता है, एक दिव्य नृत्य है। तांडव भगवान शिव द्वारा किया जाता है। भगवान शिव का यह जोरदार नृत्य सृष्टि, संरक्षण और प्रलय का भी स्रोत है। रुद्र तांडव भगवान शिव के हिंसक स्वभाव या मनोदशा, पूरे ब्रह्मांड के निर्माता और संहारक को दर्शाता है जबकि आनंद तांडव भगवान शिव के हर्षित नृत्य को दर्शाता है। भगवान शिव को
"नटराज"
कहा जाता है, जिसका अर्थ है
"नृत्य का राजा"।
भगवान शिव ने विभिन्न अवसरों पर रुद्र तांडव किया। उन्होंने तांडव किया जब उनकी पहली पत्नी सती ने दक्ष-यज्ञ या दक्ष-यग में खुद को विसर्जित कर दिया। तब क्रोधित भगवान शिव ने रुद्र का रूप धारण किया और अपना दुख और क्रोध व्यक्त करने के लिए रुद्र ताड़व का प्रदर्शन किया।
"शिव तांडव स्तोत्रम"
की पृष्ठभूमि कहानी
रामायण के उत्तर कांड के अनुसार, लंका का राजा, जिसके दस सिर और बीस भुजाएँ थीं, एक बहुत शक्तिशाली राक्षस या राक्षस था। एक बार, उसने अपने सौतेले भाई और धन के देवता कुबेर पर हमला किया, जो शहर अलका या अलकापुरी के राजा थे और शहर को हरा दिया। जब रावण "पुष्पक विमान" पर सवार होकर अपने राज्य लंका वापस आ रहा था, तो रथ कैलाश पर्वत के ऊपर से नहीं गुजर सकता था। तब रावण नंदी से मिला और उसने इसका कारण पूछा। नंदी ने कहा कि भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती रमणीय हैं, इसलिए किसी को भी वहां जाने की अनुमति नहीं है। अभिमानी रावण ने पूरे कैलाश पर्वत को उखाड़ने का प्रयास किया। जब उसने पहाड़ को उठाने की कोशिश की, तो पहाड़ हिलने लगा। सर्वज्ञ शिव को लगा कि इसके पीछे रावण है इसलिए उन्होंने अपने बड़े पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबाया। रावण का हाथ पहाड़ के नीचे फंस गया इसलिए वह दर्द में जोर-जोर से रोया और भगवान शिव की स्तुति करने के लिए 1000 साल तक "शिव तांडव स्तोत्रम" गाया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण को आशीर्वाद दिया और उसे "चंद्रहास", एक अजेय तलवार दी और उसे "रावण" नाम भी दिया, जिसका अर्थ है "जो रोया"। रावण द्वारा गाए गए स्तोत्र या भजन को "शिव तांडव स्तोत्रम" कहा जाता है।
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